खत्म हुआ कफ़ाला सिस्टम, भारतीय कामगारों के लिए राहत की खबर!

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन, ट्रेड एनालिस्ट

सऊदी अरब ने आखिरकार वह कर दिखाया, जिसका इंतज़ार लाखों विदेशी कामगार (खासकर भारतीय) सालों से कर रहे थे। दशकों पुरानी ‘कफ़ाला स्पॉन्सरशिप सिस्टम’ को खत्म कर दिया गया है — जिसे मानवाधिकार संगठन लंबे समय से ‘आधुनिक गुलामी’ (Modern Slavery) कहते रहे हैं। अब एक नया कॉन्ट्रैक्ट-बेस्ड रोजगार सिस्टम लागू होगा, जो सऊदी अरब में काम कर रहे करीब 27 लाख भारतीयों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है।

अब कफ़ील की मर्ज़ी नहीं, कामगारों को मिलेगी नौकरी बदलने की आज़ादी

नए नियमों के तहत अब कोई भी विदेशी कामगार अपने नियोक्ता (कफ़ील) की अनुमति के बिना नौकरी बदल सकता है। पहले वीज़ा, पासपोर्ट, सैलरी और देश छोड़ने तक की इजाज़त कफ़ील के हाथों में होती थी। अब अगर किसी को सैलरी नहीं मिलती या नौकरी में परेशान किया जा रहा है, तो वह शिकायत दर्ज कर सकता है और कानूनी मदद ले सकता है।

यानि अब “कामगार” नहीं, कॉन्ट्रैक्ट होल्डर कहलाएंगे।

है क्या ये कफ़ाला सिस्टम?

कफ़ाला सिस्टम खाड़ी देशों की पुरानी स्पॉन्सरशिप व्यवस्था थी, जिसमें विदेशी कामगार अपने स्थानीय नियोक्ता के “अधीन” होते थे। उनकी नौकरी, वीज़ा, और देश छोड़ने की अनुमति सब कुछ कफ़ील तय करता था। अक्सर पासपोर्ट भी मालिक के पास ही रहता था। मतलब – “सैलरी आपकी, पर कंट्रोल हमारा।”

क्यों लिया गया ये बड़ा फैसला?

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अपने महत्वाकांक्षी Vision 2030 के तहत देश को “तेल-निर्भरता से मुक्त” कर आर्थिक और बिजनेस हब बनाना चाहते हैं। निवेश को आकर्षित करने के लिए सऊदी को अपनी “कठोर छवि” बदलनी थी — और कफ़ाला सिस्टम इसका सबसे बड़ा रोडब्लॉक बन गया था।

इससे पहले भी उन्होंने महिलाओं को ड्राइविंग की अनुमति देकर दुनिया को चौंकाया था। अब यह कदम “आधुनिक सऊदी” के एक नए दौर की निशानी है।

भारतीय कामगारों को मिलेगा बड़ा फायदा

सऊदी अरब में करीब 27 लाख भारतीय काम कर रहे हैं। अब उन्हें नौकरी बदलने, बेहतर वेतन पाने और कानूनी हक़ हासिल करने की आज़ादी होगी। भारत सरकार ने भी इस फैसले का स्वागत किया है, क्योंकि इससे “मज़दूरों की गरिमा और सुरक्षा” को बल मिलेगा।

खाड़ी देशों में भारतीयों का दबदबा

जीसीसी (Gulf Cooperation Council) देशों — सऊदी अरब, यूएई, ओमान, क़तर, कुवैत और बहरीन — में कुल 90 लाख से अधिक भारतीय काम करते हैं। सिर्फ 2023 में इन देशों से भारत को 120 अरब अमेरिकी डॉलर रेमिटेंस मिला। मतलब — ये मजदूर सिर्फ विदेश में नहीं, भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

बदलाव की दिशा में आगे बढ़ता सऊदी

कफ़ाला सिस्टम का अंत सिर्फ एक सुधार नहीं, बल्कि सऊदी की “इमेज रिपेयर स्ट्रेटेजी” का हिस्सा है। तेल के भरोसे चलने वाला यह देश अब सर्विस सेक्टर, टूरिज़्म और टेक इंडस्ट्री में निवेश कर रहा है। और साफ संदेश है — “अब गुलामी नहीं, बराबरी और कॉन्ट्रैक्ट की नौकरी होगी।”

पहले सऊदी में नौकरी का मतलब था — “कफ़ील की इजाज़त से ही सांस लो।”  अब नया सिस्टम कहता है — “कॉन्ट्रैक्ट है भाई, बॉस नहीं भगवान!”

दुनिया बदल रही है, और सऊदी भी अब “तेल से निकलकर टैलेंट की तरफ” जा रहा है। सऊदी अरब का यह कदम खाड़ी देशों के श्रमिक तंत्र में ऐतिहासिक बदलाव लाने वाला है। जहां पहले विदेशी मजदूर “कफ़ील” के रहमोकरम पर रहते थे, अब वे कानूनी अधिकारों और पेशेवर आज़ादी के साथ काम कर सकेंगे।

कह सकते हैं — “तेल के बाद अब इंसानियत का दौर शुरू हुआ है।

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